Saturday, December 20, 2014

तीसरी नदी

तीसरी नदी
ये एक बेमौसम यात्रा थी
दिवस के अवसान की सर्म से
लाल  होकर सूरज
उतर रहा था त्रिवेणी संगम में
मै भी गंगा और जमुना के बीच
चमक रही एक सफ़ेद रेखा का नाम
ढूंढ़ता उतर रहा था संगम में
डूबते सूरज को थमने

मुझे अपनी मृत्यु के बाद
मिल गया था एक कला जादू
एक कच्चा जादू
और मुझे धीरज नही था
उसके पाने तक का
मैं चाहता था कि बाकी काम भी
इसी के शेयर निपटाता चलूं
मैंने अपनी बुझी हुई चिता से
एक मुठ्ठी सफ़ेद राख
और थोड़े से अस्थि अंश
एक छोटे अदृश्य
मिट्ठी के छोटे कलश मे रख लिये
इसी सुबह थोड़ी देर बाद
वे आयेंगे – ऐसे ही अवशेष
जो उनकी भाषा में फूल  होंगे
एक गोचर कलश में रखकर
ले जाने के लिये
तब तक मैं अपने फूल प्रयाग संगम में     
खुद विसर्जित कर रहा होऊँगा
त्रिवेणी संगम में
गंगा जमुना के बिच खो रही
इस पतली सफ़ेद धारा जिसका
नाम ढूढ़ते ढूढ़ते डूबता सूरज को
पकड़ने की चाह रख कर
मैं विसर्जित हो रहा था

ये सफ़ेद रेखा वाली धार
तीसरी नदी थी
जिसे देख रहा हूँ कि वो
अपने उद्दगम  से कूदकर
मचलते हुये
भटकते हुये रेगिस्तान के
गर्म बगूलों से झुलस कर
लुप्त हो गयी दुनियाँ की निगाहों में
और फिर दबी सहमी
गंगा जमुना के बीच अचानक
उछल पड़ी
ये कहाँ से आयी और ये
कहाँ जायेगी जान कर रहूँगा मैं

सारी दुनियाँ के दुख दर्द कि भाप
उठ कर हिमालय स्थावर  के
सिरमाथे पर बर्फ़ बन कर गिर कर
बन रही है एक विशाल ग्लेशियर
और ये सफ़ेद धारा वाली
तीसरी नदी जो लोगों को नही दिखती
यहीं से प्रसवित  रही है
उद्दगम से उतर कर
इस तीसरी नदी के अंतिम गंतव्य
की पड़ताल में उतर गया मैं
सीधे उस महासागर में
जिसके अन्दर तैर रहा था बिना दिखे
एक महाकाय आइसबर्ग
अपने कच्चे लेकिन सच्चे जादू से
घंटो महीनों वर्षों इसी ग्लेशियर पर
चहल कदमी करते करते
परखते परखते उसके सत्व
खोलते खोलते उसके सर्ग
आखिर मैं जान ही गया
कि उसी सफ़ेद धार वाली तीसरी नदी
के संशीत फूलों का है ये विशाल समवाय

जादू कच्चा था हांलाकि सच्चा था
और आखिर टूट गया
फुट ही गया यादों का फब्वारा
मैंने नही ढूंढा वो ग्लेशियर
न वह आइसबर्ग
बहुत पहले ये ढूंढा गया  था
माँ ममता से मेरे सिरमाथे पर
फेरते हुये हाथ सहलाते हुये
अपनी खुरदरी उँगलियों से
जब ठहर जाती थी अचानक
दुख भरे अचरज के साथ
माँ की हथेलियों और उँगलियाँ
बर्तन माँजते चुना मिट्टी से
दीवारें और चूल्हा पोतते पोतते
कट फट कर खुरदरी हो गई थी
उर उनमें ऐसे ग्लेशियर
टटोल लेने की

माँ के न रहने पर
पत्नी प्रेमार्द  हो कर
जब अपने दुखों को नबा कर
मेरे साइन पर हाथ फेरते-फेरते
सन्न होकर ठहर जाती
जैसे एक दम उतर गयी हो
महासागर के महाकाय आइसबर्ग  पर
यहाँ कोई जादू नही था
न कच्चा न पक्का
न झूठा न सच्चा
मैं न मरने के पहले
न मरने के बाद
कभी नही खोज पाया था
तीसरी नदी के स्रोत  न अंतपिंड
ये तो कोई और हैं
जो जानते हैं इन्हें पहले से




काव्य-नट
उस बेकवूफ  बच्चे ने
सुनायी है यह कहानी
जो मुझे देखकर छिप गया है अभी-अभी
तुम्हारे अन्दर

मोमबत्ती बेचने वाले व्यपारी ने
बचे हुये मोम से एक दिन
बनाई एक मोम की बीन
तिन या चार चूडैलों को नचाने
को काफी थी उसकी धुन
धुन अद्दभुत थी
सारी काली और सफ़ेद आत्मओंको
सम्मोहित कर लेने को

व्यपारी मोमबत्तियां बेचने
गुजरा दुनियाँ की एक बहुत बड़ी रानी के
महल के सामने से
जहाँ पिछली रात रानी को
डस लिया था राजमहल में रहने वाले
राजनग ने
राजनग अदृश्य था
लेकिन उस व्यपारी की उस बीन
की धुन सुनकर सम्मोहित होकर
चल दिया उसके साथ
बाद में एक खास कब्रिस्तान में
दफनाया गया था रानी को
कहानी को भुला दिया जाता है
इस लिये उस कब्र के बगल में
मुकर्रर कर दी गई एक और कब्र की जगह
इसके बाद से राज
मोमबत्ती का व्यपारी बचा लेता था
शाम तक अपनी दो मोमबत्तियां
बेचने से
और अंधेरा होते ही जाकर कब्रिस्तान में

जला देता था एक मोमबत्ती
महारानी की कब्र में
दूसरी बिन खुदी लेकिन कब्र के लिये
मुकर्रर जगह के सिरहाने पर
आने पर वापस घर
खोल कर शाँप वाली टोकरी
वह सहलाता था राज नाग को
सुनता था मोम के बीन एक धुन
सम्मोहित शाँप को सुला कर

हर सुबह व्यपारी फिर आता
बिना खुदी लेकिन कब्र के लिये
मुकर्रर जगह पर उसे मिलता था रोज
एक टोकरी भर मोम
फिर जाता था उस जुलाहे के पास
जो तैयार करता था
मोमबत्ती का धागा
भागा भागा जब व्यपारी
पहुँचता था घर
साँप अपनी टोकरी भर लेता था
गुस्से से उलग उलग कर
जहर का फेन
ऐन वक़्त पर सम्हालता व्यापारी
टोकरी खोल कर सहलाता नाग को
झाग को समेटता और बजता बीन
सम्मोहित साँप पीकर थोड़ी हवा
चुपचाप सो जाता
व्यपारी भर लेता टोकरी से
निकल कर जहरीला-फेन
एक बड़ी दावात में

अब व्यपारी बड़ी मेहनत से
दिन भर बनता मोमबत्तियाँ
लेकिन बचा कर थोड़ी मोम
बनाता था एक अच्छी कलम

एक शाम व्यपारी
महारानी की कब्र पर एक
और दूसरी पास में मुकर्रर जगह पर
जला कर मोमबत्ती
घर लौटा और खोल कर देखी
साँप की बेकरी वह सन्न रह गया
साँप की आँखे कैमरा की लेंस की तरह
बाहर निकल आयीं थी
और अपने ही जहर के फेन में
लिथड़ा लिथड़ा मर गया था


व्यपारी भर बैठा
दुख में डूबा जगता रहा
सुबह उसे उसी की टोकरी में
लेकर पहुँचा कब्रिस्तान
दुसरी कब्र के लिये मुकर्रर जगह पर
उनसे खोदी एक पूरे आदमी के नाप की कब्र
और उसमें उसे दफना दिया

उसी दिन शाम को वह गया कब्रिस्तान
और दोनों कब्रों पर जला कर
एक एक मोमबत्ती
वह वापस उदास लौट आया

अगली सुबह जब वह
टोकरी लेकर मोम लेने गया
और उसे कोई मोम नही मिला
फिर न बन सकीं मोमबत्तियाँ
मोमबत्तियों का उसका धंधा
बंद हो गया  
आखिर कब तक रहता बेरोजगार
उसने जुलाहे से बुनी हुई चादरें लीं
और निकली अपनी मोम की बीन
पिचा कर चादर उसके सामने
बजाता बीन और चादर में
समुन्द्र की लहरें उठने लगतीं

फिर वह अपनी मोम की कलम लेता
और जहर के फेन वाली दाबात में
डुबोकर चादर पर कसीदा करने लगा
चादरें समुंद्री लहरों से उछालती नाचतीं
कलमें जहर के रंग भरते-भरते टूटतीं
और इस तरह चादरों पे चादरें चढ़ती गयीं

कलमों पे कलमें टूटती गयीं
और फिर एक दिन व्यपारी ने एक अधकढ़ी चादर के
एक कोने से अपने हाथ पोंछे और सो गया
और अब सो रहा है
दाबात में जहरीले फेन की स्याही की
एक सूखी पर्त अब भ तली में हैं

कुछ टूटी हुई मोम की कलमें
पिघली हुई मोम की बीन
रानी के महल के खंडहर
घास और खरपतवार से दबी वे
दोनों कब्रें अब भी ढूँढी जारही हैं

वे कढ़ी हुई चादरें
जहरीलें फेन की स्याही की क्सिदाकरी
रोशनी की कला के साथ दिखाती हैं
अपनी कला अलग अलग रंग झलकती
उसका हर रंग खुल जाता है
जैसे वो रंग नही रंगमंच है दुनिया का
जहाँ उतर कर आतें हैं पुतले
मोम के पुतलों के आजयबघर से
बजती रहती है सम्मोहित करने वाली बीन
तीन-तीन बार रुक-रुक कर घिसता है
मोम का व्यपारी अपनी एड़ी
तो जहर के फेन की सूखी परत के
चटकने की आवाज सुनायी पड़ती है
हलकी सी भी आहट नही होती
जब मोम के व्यपारी की छाया
चुपचाप टहलती रहती हैं रंग मंच के पीछे

नीचे जुटे रहते है रात दिन बिना थके रंगकर्मी
उसे जीवित करने को
जहाँ सारा प्रेसगृह सुन्धता रहता है
एक बासी लेकिन अनोखी गंध

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